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Poetry written by Mr Rustamdeen Panwar
s\o Late Ramzan Khan Panwar
करो माँ बाप की सेवा,बनो फिर बाद मैं हाजी
खुद और मुस्तफा दोनों ,तुम्हारे से हो फिर राज़ी .
तुम्हारे पास हो पैसा ,नहीं वो साथ जायेगा .
किसी गरीब को दिया हुआ,फिर भी काम आएगा .
सहारा दे दे तूँ यतीम को,दुआ उनसे पाये.
मदीने जाने से पहले ,यहाँ हाजी तूँ बन जाये .
दुआवों में असर ऐसा ,यकीन हो चीर दे सीना .
दिखा देगा ज़माने को,यहाँ मक्का और मदीना.
लगी लो मुस्तफा की ,बंद आँखों से सब कुछ दिख जाये.
सहारा दे दे तूँ यतीम को,दुआ उनसे पाये.
मदीने जाने से पहले ,यहाँ हाजी तूँ बन जाये .
हमारे मुस्तफा की आभा और मेहताब का चेहरा
करूँ दीदार मर जाऊं,नहीं कोई वह पेहरा .
बने वो नबियों के सरदार और इमाम कहलाये.
सहारा दे दे तूँ यतीम को,दुआ उनसे पाये.
मदीने जाने से पहले ,यहाँ हाजी तूँ बन जाये .
मदीने मैं रहे तो "रुस्तम"को सुकून मिलता है.
जमीं कौसर सी लगती है ,दिल का बाग़ खिलता है.
जहाँ ज़न्नत ही मिलती है,वहां पर क्यों नहीं जाएँ .
सहारा दे दे तूँ यतीम को,दुआ उनसे पाये.
मदीने जाने से पहले ,यहाँ हाजी तूँ बन जाये.
मेरी तक़दीर बन जाती ,जन्म होता मदीने मैं .
वहां की गलियों में फिरता ,मजा आ जाता जीने मैं.
मरुँ जब ,मुस्तफा की सर जमीन पर मुझ को दफनाये
मेरी तक़दीर बन जाती ,जन्म होता मदीने मैं .
वहां की गलियों में फिरता ,मजा आ जाता जीने मैं.
मरुँ जब ,मुस्तफा की सर जमीन पर मुझ को दफनाये
Adapted by - Sadik Khan Panwar
Categories: Poets
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